मालवा देश की उज्जयिनी नगरी में पिता धन सेठ एवं माता भद्रा सेठानी की कोख से अवंति सुकुमाल का जन्म हुआ I पूर्व जन्म में नलिनीगुल्म विमान के स्वर्गीय सुख भोगकर वे यहाँ जन्मे थे और अति सुख और वैभव भोग रहे थे रंभा जैसी बत्तीस नारियों से उनकी शादी हुई थी !
उज्जयिनी नगरी में मुनि श्री आर्यसुहस्तिजी बड़े परिवार के साथ अश्वशाला में ठहरे थे उनमें से दो साधुओं ने भद्रा सेठानी के पास आकर आवासके लिये स्थान की माँग की, प्रसन्न होकर भद्रा सेठानीने इन दोनों साधुओं को योग्य स्थान पर ठहराया इनमें से एक साधु नलिनीगुल्म का अध्ययन करते हैं, जो अवंति सुकुमाल के कानोंमें पड़ता है और वे ध्यान से एकाग्रता से सुनते हैं सुनते सुनते उन्हें जातिस्मरण ज्ञान होता है और नलिनीगुल्म के सुखवैभव जो भोगे थे वे याद आते हैं; उस सुख के सामने वर्तमान संसार के सुख तुच्छ लगते हैं वे गुरुजी को पूछते हैं कि इस नलिनीगुल्म के सुख मैंने गत जन्म में भोगे हैं वहाँ कैसे पहुँचा जाय ? मुझे इस संसार में अब नहीं रहना है शीघ्र ही ज्यों हो सके त्यों नलिनीगुल्म जाना है, गुरुजी समझाते हैं, संयम ग्रहण करके ऐसे सुख पा सकते हैं अवंति सुकुमाल उनसे चारित्र की माँग करते हैं गुरुजी समझाते हैं, आप चारित्र कैसे पाल सकोगे ? यह तो बड़ा दुष्कर कार्य है पंचमहाव्रत पालने पड़ेंगे आप वैभव में पले हैं, कैसे ये दुःख झेल सकेंगे ? और चारित्र लेना है तो माता-पिता की आज्ञा भी चाहिए यह सुनकर अवंति सुकुमाल माताजी के पास चारित्र लेने के लिए आज्ञा माँगते हैं माताजी किसी भी प्रकार से सहमत नहीं होती है और कहती है, तुझे किसने भरमाया है ? किसने तुझे बहकाया है ? अवंति सुकुमाल अब क्षणभर भी संसार में रहना नहीं चाहते माता ने आज्ञा न दी, साधु महाराज ने दीक्षा देने से इनकार किया I इसलिए केश लोचन करके योग्य लगा वैसे स्वयं ही दीक्षा ले ली I
ऐसा देखकर, अपना कोई उपाय अब काम का नहीं है ऐसा समझकर माताजीने भारी मन से संयम के लिए अनुमति दे दी, बत्तीस नारी एवं माताजी वगैरह मुनिराज के पास आये और अवंति सुकुमाल को पांच व्रत ग्रहण कराने की विनती की मुनिराज ने प्रेम से व्रत ग्रहण करवाये I अब अवंति सुकुमाल गुरुजी को हाथ जोड़कर कहते है, “मैं ये तप क्रिया आचार पाल नहीं सकूंगा आप अनुमति दे तो अनशन करूं और जल्दी मुक्ति पा लूँ” मुनि महाराज ने “जैसे आपको सुख उपजे वैसे करो” यों कहकर अनुमति दी अवंति सुकुमाल ने क्षमा-याचना गुरु के पास करके स्मशान में जाकर अनशन प्रारंभ किया I स्मशान में जाते हुए पाँव में काँटे लगे और पाँव से खून बहने लगा I उसकी गंध से एक लोमड़ी अपने बच्चों के साथ वहाँ आई, पाँवों को काटने लगी और धीरे धीरे संपूर्ण शरीर को चीर फाड़कर रुधिर-माँस की जियाफत उडाई I मरकर अवंति सुकुमाल ने अपने निश्चयके अनुसार नलिनीगुल्म विमान में जन्म लिया I दृढ मनोबल से इच्छित सुख पाया I दूसरे दिन माताजी एवं अन्य स्त्रियाँ अवंतिसुकुमाल की वंदना हेतु गुरुजी के पास आईं और पूछा, “कहाँ है हमारे अवंति ? गुरुजी ने कहा, “उन्होंने तो अनशन लिया है जहाँ से जीव आया था वहाँ चला गया ” सर्व परिवारजनों ने स्मशान में जाकर अवंति सुकुमाल का चीरा-फटा शरीर, शरीर के टुकड़े देखे ! मोहवश बहुत रोये अंत में एक नारी को घर छोड़कर, सबने चारित्र ग्रहण करके सद्गति प्राप्त की I