एक बार राजा कृष्णदेव राय कटक की यात्रा पर गए हुए थे। वहाँ वह नर्मदा नदी के पर गए। नदी पर जाने पर उनने देखा की एक ऋषि वहाँ पर ध्यान लगाए हुए थे। राजा के देखते ही देखते वह हवा में ऊपर उठ गए।
राजा ने सोचा यह जरूर ही बहुत ज्ञानी ऋषि है। इसलिए इनसे आशीर्वाद लेना चाहिए। राजा ऋषि के पास गए और उनका आशीर्वाद माँगा।
ऋषि बहुत ज्ञानी थे उनने राजा को बताया की तुम कुछ समय पहले ही अपने पड़ोस के राज्य से युद्ध जीत चुके हो लेकिन उसमे बहुत से लोग मारे गए है। जिसके कारण तुम दुखी हो। राजा ने कहा यह सत्य है इसलिए मुझको आशीर्वाद दीजिये जिससे की मेरा राज्य तरक्की करे और खुश रहे।
ऋषि ने शक्ति से एक कटोरा प्रकट किया उसको राजा को दिया। इसके बाद अपनी शक्ति से उस कटोरे को पानी से भर दिया। ऋषि ने राजा से कहा की तुम इस कटोरे का पानी लेकर अपने राज्य में जाओ और इस पानी को अपने खजाने में छिड़क देना।
जिससे तुम्हारा खजाना बढ़ने लगेगा और तुम्हारा राज्य हमेशा खुश रहेगा। ऋषि ने राजा से कहा की लेकिन इस बात का ध्यान रखना की इस कटोरे को ले जाते हुए एक बून्द पानी भी जमीन में नहीं गिरना चाहिए।
इसके बाद राजा कटोरे को लेकर जाने लगे। राजा ने सोचा यदि कटोरे को ले जाने के लिए वह सेनापति को कहेंगे तो वह इसको ले जाने में सक्षम नहीं है।
राजा ने कटोरे को ले जाने के लिए तेनाली राम को कहा। राजा ने तेनाली राम को अच्छे से समझा दिया की पानी की एक बून्द भी नहीं गिरनी चाहिए। इसके बाद राजा अपने राज्य के लिए चले गए।
तेनाली राम भी अपने रथ में राज्य के लिए जाने लगे। तेनाली राम का रथ सेनापति चला रहा था। जो तेनाली राम को पसंद नहीं करता था। वह चाहता था की तेनाली उस कटोरे का पानी राज्य नहीं ले जा पाए। इसलिए वह पत्थर वाले रास्ते से तेनाली का रथ ले जा रहा था। जिससे रथ बहुत उछल रहा था। लेकिन तेनाली बिना किसी परवाह के रथ में सो गए। जब रथ महल पहुंचा तो राजा ने रथ में तेनाली को सोता देखकर गुस्सा हुए और तेनाली से कटोरे के बारे में पूछा।
इसके बाद तेनाली ने दिखाया की उसने पानी के कटोरे को चमड़े की थैली में डालकर बांध दिया था। जिससे रथ के उछलने पर भी कटोरे का पानी गिरा नहीं। राजा कृष्णदेव तेनाली की बुद्धिमानी देखकर बहुत खुश हुए और तेनाली राम की सेनापति के सामने खूब प्रशंसा की।