एक बार एक गांव में मोहन नाम का एक आदमी रहता था। वह बहुत सीधा था। लेकिन उसका नौकर गगन बहुत चालाक था। मोहन के घर में कोई भी मदद के लिए आता तो वह उसकी मदद जरूर करता था। वह साधुओं की भी बहुत सेवा करता था।

एक दिन मोहन बाजार से कुछ आम लेकर आया। उसने अपने नौकर गगन को कहा की तुम इन आम को काटकर रख दो। मै किसी साधु को बुलाकर लाता हूँ। पहले इन्हें किसी साधू को खिलाकर ही हम खाएंगे। यह कहकर मोहन चला गया।

गगन आम को ले जाकर उनको काटने लगा आम को काटने पर उसमे से बहुत ही स्वादिष्ट खुशबू आई। जिससे गगन को आम खाने का बहुत मन किया इसलिए उसने एक आम का टुकड़ा उठा कर खा लिया।

लेकिन इससे उसका मन नहीं भरा और थोड़ा-थोड़ा करते हुए उसने सारे आम खाकर खत्म कर दिए। कुछ देर में मोहन एक साधु को लेकर आया और गगन को कहा कि तुमने जो आम काटे है उनको लेकर आओ। यह सुनते ही गगन ने मालिक को रसोई में बुलाया और कहा कि चाकू में धार नहीं है।

जिससे आम नहीं कटे। मोहन ने कहा कि इतनी सी बात है मैं इसमें बाहर ले जाकर अभी धार लगा देता हूं। यह कह कर वह चाकू में धार लगाने बाहर चला गया। इसके बाद गगन साधु के पास गया और बोला की आप यहां से चले जाओ मेरा मालिक पागल है वह साधु को बुलाकर उनके हाथ काट देता है।

अगर आपको विश्वास नहीं है तो आप बाहर देख लो वह चाकू की धार इसलिए तेज कर रहा है। जब साधु ने सच में मोहन को चाकू पर धार लगाते हुए देखा तो उसे गगन की बात पर भरोसा हो गया और वह वहां से भाग गया। चाकू की धार लगाकर जब मोहन अंदर आया तो उसने गगन से साधु के बारे में पूछा तो गगन ने  कहा कि साधु सारे आम चुरा कर भाग गया।

जब मोहन ने यह सुना तो वह भी साधू के पीछे भागा और कहा की साधू रुक जाओ। अपने पीछे मोहन को आता हुआ  देखकर साधु डर कर और तेजी से भागने लगा। इस तरह  चालाक नौकर गगन ने अपनी चालाकी से अपने मालिक को बेवकूफ बनाया।

 

Moral of the new story:

इस नई कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हमें किसी की बात पर आँख मूंद कर भरोसा नहीं करना चाहिए।