एक बार एक लोमड़ी और हंस दोस्त थे। लोमड़ी बहुत चालक थी और जंगल के दूसरे जानवरों के साथ चालाकी करती थी। उसने हंस के साथ भी एक दिन चालाकी करने की सोची। उसने हंस को बोला की आज मेरा जन्मदिन है तुम्हे मेरे घर दावत पर आना है।

मै आज चिकन सूप बनाउंगी। शाम को हंस लोमड़ी के घर दावत पर पहुंच गयी। लोमड़ी ने चालाकी से एक प्लेट में दोनों को चिकन सूप परोसा। लोमड़ी ने बड़े मज़े से प्लेट से चिकन सूप खा लिया। लेकिन हंस अपनी चोंच की वजह से कुछ भी नहीं खा पायी।

हंस को समझ आ गया की लोमड़ी ने उसको बेवकूफ बनाया है। इसके बाद हंस बिना कुछ खाये ही वहाँ से चली गयी। कुछ दिनों के बाद हंस लोमड़ी के घर आयी और बोली की आज मेरा जन्मदिन है मैंने तुम्हारे लिए चिकन सूप बनाया है। तुम मेरे घर आ जाना।

यह सुनकर लोमड़ी बहुत खुश हुई क्योंकि वह बहुत भूखी थी। उसने सोचा यह कितनी बेवकूफ है मैंने इसके साथ ऐसा किया लेकिन फिर भी यह मुझको खाने पर बुला रही है। शाम को लोमड़ी हंस के घर पहुंची। हंस ने दो सुराही में चिकन सूप परोसा।

हंस अपनी लम्बी चोंच की वजह से आसानी से सारा खाना खा गयी। लेकिन लोमड़ी का मुँह पतली सुराही में जा ही नहीं रहा था। अब लोमड़ी को समझ आ गया की उसने जिस तरह हंस को चालाकी दिखाई। हंस ने भी अपनी चतुराई से लोमड़ी को सबक सीखा दिया। इसके बाद लोमड़ी को बिना कुछ खाये ही लौटना पड़ा।

Moral of the story:

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हमें किसी को बेवकूफ नहीं समझना चाहिए।