अजितनाथ भगवान्‌
 
जन्म नगर -  अयोध्या
पिता - जितशत्रु
केवलज्ञान तिथि - पौष शुक्ला ११
माता - विजया
चारित्र पर्याय - १ पूर्वांग कम १ लाख पूर्व
जन्मतिथि - माघ शुक्ला ८
कुमार अवस्था - १८ लाख पूर्व
कुल आयु - ७२ लाख पूर्व
राज्य काल - ५३ लाख पूर्व, १ पूर्वांग
निर्वाण तिथि - चैत्र शुक्ला ५
दीक्षा तिथि - माघ शुक्ला ६
चिन्ह - हाथी
 
अजितनाथ भगवान्‌ वर्तमान चौबीसी के दूसरे तीर्थंकर हैं। ये विनीता नगरी के महाराज जितशत्रु के पुत्र थे। आप महारानी विजया देवी के गर्भ में विजय नामक दूसरे अनुत्तर विमान से च्यवकर वैशाख सुदी १३ को आये। माता ने चौदह स्वप्न देखे । माघ सुदी ८ को प्रभु का जन्म हु‌आ। जब प्रभु गर्भ में थे, तब सारि पासा के खेल में महाराज से महारानी पराजित नहीं हो सकीं । महाराज हैरान रहे । महाराज ने महारानी के अजित रहने का कारण गर्भस्थ शिशु का प्रभाव माना, अतः पुत्र का नाम भी "अजित" रख दिया। अजितनाथ १८ लाख पूर्व तक कुमार पद पर रहे, ५३ लाख पूर्व ओर एक पूर्वांग* के समय तक राज्य किया। इसके उपरांत अपने चाचा सुमित्रविजय के पुत्र सगर को राज्य देकर मुनित्व स्वीकार किंया। सगर दूसरा चक्रवर्ती बना। अजितनाथ प्रभु ने १२ वर्ष छद्मस्थ रहकर तपश्चरण किया और फिर केवलज्ञान प्राप्त किया । 
 
आपकी दीक्षा पर्याय १ पूर्वांग कम एक लाख पूर्व की रही। इस प्रकार आपकी संपूर्ण आयु ७२ लाख पूर्व की थी। आयु का अंतिम समय जानकर १ हजार साधु‌ओं के साथ एक महीने के अनशन में चेत्र सुदी ५ को मोक्ष पधारे । स्मरण रहे आपके शासनकाल में सभी बातें उत्कृष्ट थीं।
 
धर्म-परिवार
 
गणधर - ६५
मनःपर्यवज्ञानी - १२,५००
केवली साधु - २२,०००
अवधिज्ञानी - ६,४००
केवली साध्वी - ४४,०००
पूर्वधर - ३,२७०
वादलब्धिधारी - १२,४००.
साध्वी - ३,३०,०००
वैक्रियलब्धिधारी - २०,४००
श्रावक - २,६८,०००
साधु - १,००,०००
श्राविका - ५,४५,०००
१. चौरासी लाख को चौरासी लाख से गुणन-करने पर जो संख्या आती है, उसे पूर्व कहते हें अर्थात्‌ ७००५६०००००००००० वर्ष को पूर्व कहते हैं ।
२. चौरासी लाख॑ वर्ष को एक पूर्वांग कहते हैं।
 
--त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व २