भद्दिलपुर के नाग गाथापति की पत्नी का नाम सुलसा था। सुलसा को भी अन्य स्त्रियों की भाँति पुत्र प्राप्ति की सहज अभिलाषा थी। एक नैमित्तिक ने उसे बताया कि तेरे मृत संतान होगी। इसलिए उसने हरिणगमेषी देव की आराधना की। आराधना से प्रसन्न होकर हरिणगमेषी देव उसका संकट मिटाने को तत्पर हो गया। उसने अवधिज्ञान से विचार करके जान लिया कि यद्यपि कंस ने देवकी के सभी पुत्रों को मारने का संकल्प कर लिया है, लेकिन उसके छहों पुत्र पूर्ण आयुष्य वाले हैं। अत: हरिणगमेषी देव ने देवकी के छ: पुत्रो का हरण कर सुलसा के यहाँ रखा तथा सुलसा के मृत पुत्रों को देवकी के यहाँ रख दिया। देवकी के छ: पुत्र चरम शरीरी होने से कंस के हाथ मरने से बच गये। वे सुलसा के यहाँ पलने लगे। बड़े होने पर उनकी शादी कर दी गई। सारे वैभव को ठुकराकर वे छहों नेमिनाथ प्रभु के पास दीक्षित हुए। उग्रतम तप:साधना द्वारा सभी कर्मों का नाश किया। उन छहों के नाम हैं-१ अजितसेन २ अनिकसेन ३ अनन्तसेन आदि छ: भाइयों में अजितसेन सबसे बड़े थे। बीस वर्ष तक संयम पालन कर एक महीने का अनशन करके शंत्रुजय पर्वत से मोक्ष पधारे।
--अन्तकृद्दशा ८