अगड़दत्त मुनि अवन्ती जनपद में ’उज्जयिनी’ नाम की समृद्ध नगरी थी। वहाँ राजा ’जितशत्रु’ राज्य करता था। उसके सारथी का नाम ’अमोघरथ’ था। अमोघरथ की पत्नी का नाम ’यशोमती’ और उसके पुत्र का नाम ’अगड़दत्त’ था। अगड़दत्त के पिता का देहान्त बचपन में ही हो गया था। इसीलिए वह ’कौशाम्बी’ में अपने पिता के मित्र और सहपाठी ’दृढ़प्रहारी’ के पास सारथी विद्या सीखने गया। वहाँ से शिक्षा प्राप्त करके जब अगड़दत्त उज्जयिनी लौटा और राजा जितशत्रु से मिला तथा अपना परिचय दिया तो राजा ने कहा, तुम्हारी शिक्षा हिंसाप्रधान है, इसमें कोई विशेषता नहीं है। सच्ची शिक्षा तो महाव्रतों का पालन ही है।’ इतने में जनपद के निवासियों ने आकर प्रार्थना की महाराज ! हम लोग एक चोर से बहुत दु:खी हैं। हमें चोर के आतंक से मुक्त कराइये।’
इस पर अगड़दत्त ने चोर को पकड़ने का प्रण कर लिया। उसने चोर को ठिकाने लगा दिया। उसके गुप्त स्थान का पता लगाया, जहाँ उसने चोरी का धन रखा था और प्रजा का कष्ट मिटाया। कौशाम्बी-निवासी ’यक्षदत्त’ गृहपति की पुत्री ’श्यामदत्ता’ के साथ उसका विवाह हुआ। कौशाम्बी से वह ’उज्जयिनी’ अपनी पत्नी के साथ रथ में बैठकर जा रहा था। मार्ग में उसे एक सार्थ मिला। वे दोनों सार्थ के संग हो लिये। इसी सार्थ में एक परिव्राजक भी आ मिला। अगड़दत्त परिव्राजक की चेष्टाओं से समझ गया कि यह कोई धूर्त, ठग और चोर है। मार्ग में उस परिव्राजक ने सार्थ वालों को विष-मिश्रित खीर खिलाई। परिणामस्वरूप सभी काल के गाल में समा गये। लेकिन अपनी सावधानी के कारण अगड़दत्त और श्यामदत्ता बच गये। अगड़दत्त के साथ संघर्ष में परिव्राजक मरण-शरण हो गया।
इसी प्रकार मार्ग में बाघ, सर्प, अर्जुन चोर पर विजय प्राप्त करके अगड़दत्त श्यामदत्ता से साथ उज्जयिनी पहुंच गया और राजा की सेवा करते हुए सुख से रहने लगा।
एक बार राजाज्ञा से उद्यान में उत्सव मनाया गया। उस उत्सव में अगड़दत्त भी अपनी पत्नी श्यामदत्ता के साथ सम्मिलित हुआ। लेकिन श्यामदत्ता को नाग ने डस लिया। वह अचेत हो गई। अगड़दत्त को अपनी पत्नी श्यामदत्ता से बहुत प्यार था। इसलिए वह अपनी पत्नी के शव के पास बैठा आधी रात तक आँसू बहाता रहा। उसी समय आकाश-मार्ग से दो विद्याधर निकले। उन्हें अगड़दत्त पर दया आ गई। वे भूमि पर उतरे और विद्याबल से श्यामदत्ता को निर्विष कर दिया। अगड़दत्त ने उनका बहुत उपकार माना । उस समय रात आधी से अधिक हो चुकी थी । इसलिए अगड़दत्त ने शेष रात्रि वहीं उद्यान में बने देवकुल के पास ही व्यतीत करने का निर्णय किया । लेकिन रात्रि की कालिमा को कम करने तथा शीत से बचने के लिए अग्नि की आवश्यकता होती है । इसलिए वह पत्नी श्यामदत्ता को वहीं बिठाकर श्मशान से अंगारे लेने चल दिया, जिससे रात्रि प्रकाश के सहारे व्यतीत की जा सके।
जब अगड़दत्त श्मशान से अंगारे लेकर लौटा तो उसे देवकुल में प्रकाश दिखाई दिया। तब उसने पत्नी से पूछा - ’देवकुल में प्रकाश कैसा है?’ पत्नी ने कह दिया कि ’आपके हाथ की अग्नि की परछाईं है।’ अगड़दत्त ने उस पर विश्वास कर लिया। रात उन दोनों ने वहीं व्यतीत की और सुबह अपने घर लौट आये ।
एक दिन अगड़दत्त के घर दो मुनि गोचरी हेतु आये । उसने उन्हें आहार प्रतिलाभत किया । इसके कुछ देर बाद दूसरे दो मुनि आये। उसने उन्हें भी आहारदान दिया। तत्पश्चात् तीसरे दिन दो मुनि आये, उन्हें भी उसने प्रासुक आहार बहराया। इसके बाद वह उद्यान पहुँचा, उनकी देशना सुनी और फिर पूछा- ’आप छहों मुनि समान रूप वाले हैं, आयु भी आपकी कम है, फिर आपने इतनी छोटी उम्र में वैराग्य क्यों ले लिया?’
उन मुनियों ने बतायाविंध्याचल के सन्निकट ’अमृतसुन्दरा’ नाम की चोर पल्ली है। वहाँ ’अर्जुन’ नाम का चोर सेनापति था । हम छहों अर्जुन के छोटे भाई हैं। एक बार एक युवक अपनी पत्नी के साथ रथ में बैठकर उधर से निकला। उसने अर्जुन चोर यानि हमारे भाई को मार गिराया। हम छहों उसका पता लगाते हुए उज्जयिनी आ गये। उस दिन उद्यान में उत्सव था । वह युवक भी अपनी पत्नी के साथ उत्सव में आया। लेकिन उसकी पत्नी को सर्प ने काट लिया, वह मूर्च्छित हो गई। वह युवक अपनी पत्नी के मूर्च्छित शरीर के पास बैठक रोता रहा । इतने में दो विद्याधर आकाश मार्ग से उधर आ निकले। उन्होंने उसकी पत्नी को निर्विष कर दिया। वह रात्रि व्यतीत करने के लिए पत्नी को वहीं छोड़कर समशान से अंगारे लेने चला गया ।
हमें उसी युवक को तलाश थी। हम छहों भाई भी उद्यान में पहुँच चुके थे। हम पाँचों तो देवकुल में तथा इधर-उधर छिप गये थे और अपने छोटे भाई पर उसे मारने का उत्तरदायित्व डाल दिया था। उसने उस युवक की पत्नी को धमकी दी कि ’मैं तुझे तथा तेरे पति दोनों को मार डालूँगा ।’
उस स्त्री ने घबराकर कहा - ’मैं ही अपने पति को मार दूँगी, पर तुम मुझे मत मारना।
यह सुनकर हमारा छोटा भाई आश्वस्त हो गया और देवकुल के अन्दर चला आया। वह हाथ के दीपक को ढक भी नहीं पाया था कि वह युवक आ गया। उसने अपनी पत्नी से पूछा भी कि ’देवकुल में प्रकाश कैसा है ?’ तो उसने बहाना बना दिया कि आपके हाथ की अग्नि की परछाई है।
फिर वह युवक अपनी तलवार अपनी पत्नी के हाथ में देकर आग सुलगाने लगा। पत्नी ने उसे मारने के लिए तलवार उठाई। इतने में ही हमारे छोटे भाई का हृदय द्रवित हो गया कि ’स्त्री का हृदय कितना क्रूर होता है कि जो पति उसके शव पर बैठा आधी रात तक रोता रहा, उसी को वह किस निर्दयता से मारने को तैयार है। यह सोचकर उसने उस स्त्री के तलवार वाले ने हाथ पर प्रहार किया । तलवार उसके हाथ से छूटकर गिर गई। उस युवक अपनी पत्नी से फिर पूछा- ’क्या हुआ ?’ उसने फिर बहाना बना दिया ’घबराहट में तलवार हाथ से छूट गई। ’