सुविधि पुष्पदन्त अर्हन् के संघ में पचहत्तर सौ केवलि जिन थे। शीतल अर्हन् पचहत्तर हजार पूर्व वर्ष अगारवास में रहकर मुंडित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए शान्ति अर्हन् पचहत्तर हजार वर्ष अगारवास में रहकर मुंडित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए।
विद्युत्कुमार देवों के छिहत्तर लाख आवास (भवन) कहे गए हैं। इसी प्रकार द्वीपकुमार, दिशाकुमार, उदधिकुमार, स्तनितकुमार और अग्निकुमार इन दक्षिण – उत्तर दोनों युगल वाले छहों देवों के भी छिहत्तर लाख आवास (भवन) कहे गए हैं। जम्बूद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर कुछ अधिक उन्यासी हजार योजन है।
श्रेयांस अर्हन् अस्सी धनुष ऊंचे थे। त्रिपृष्ठ वासुदेव अस्सी धनुष ऊंचे थे। अचल बलदेव अस्सी धनुष ऊंचे थे। त्रिपृष्ठ वासुदेव अस्सी लाख वर्ष महाराज पद पर आसीन रहे। रत्नप्रभा पृथ्वी का तीसरा अब्बहुल कांड अस्सी हजार योजन मोटा कहा गया है। देवेन्द्र देवराज ईशान के अस्सी हजार सामानिक देव कहे गए हैं। जम्बूद्वीप के भीतर एक सौ अस्सी योजन भीतर प्रवेश कर सूर्य उत्तर दिशा को प्राप्त हो प्रथम बार (प्रथम मंडल में) उदित होता है।
नवनवमिका नामक भिक्षुप्रतिमा इक्यासी रात – दिनों में चार सौ पाँच भिक्षादत्तियों द्वारा यथासूत्र, यथामार्ग, यथातत्त्व स्पृष्ट, पालित, शोभित, तीरित, कीर्तित और आराधित होती है। कुन्थु अर्हत् के संघ में इक्यासी सौ मनःपर्यय ज्ञानी थे। व्याख्या – प्रज्ञप्ति मे इक्यासी हजार महायुग्मशत कहे गए हैं।
इस जम्बूद्वीप में सूर्य एक सौ ब्यासीवे मंडल को दो बार संक्रमण कर संचार करता है। जैसे – एक बार नीकलते समय और दूसरी बार प्रवेश करते समय। श्रमण भगवान महावीर ब्यासी रात – दिन बीतने के पश्चात् देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ से त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भ में संहृत किये गए। महाहिमवन्त वर्षधर पर्वत के ऊपरी चरमान्त भाग से सौगन्धिक कांड का अधस्तन चरमान्त भाग ब्यासी सौ योजन के अन्तर वाला कहा गया है। इसी प्रकार रुक्मी का भी अन्तर जानना चाहिए।
श्रमण भगवान महावीर ब्यासी रात – दिनों के बीत जाने पर तियासीवे रात – दिन के वर्तमान होने पर देवानन्दा के गर्भ से त्रिशला के गर्भ में संहृत हुए। शीतल अर्हत् के संघ में तियासी गण और तियासी गणधर थे। स्थविर मंडितपुत्र तियासी वर्ष की सर्व आयु का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित हुए। कौशलिक ऋषभ अर्हत् तियासी लाख पूर्व वर्ष अगारवास में रहकर मुंडित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए। चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा तियासी लाख पूर्व वर्ष अगारवास में रहकर सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी केवली जिन हुए।
चौरासी लाख नारकावास कहे गए हैं। कौशलिक ऋषभ अर्हत् चौरासी लाख पूर्व वर्ष की सम्पूर्ण आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त और परिनिर्वाण को प्राप्त होकर सर्व दुःखों से रहित हुए। इसी प्रकार भरत, बाहुबली, ब्राह्मी और सुन्दरी भी चौरासी – चौरासी लाख पूर्व वर्ष की पूरी आयु पालकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए श्रेयांस अर्हत् चौरासी लाख वर्ष की सर्व आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। त्रिपृष्ठ वासुदेव चौरासी लाख वर्ष की सर्व आयु भोगकर सातवी पृथ्वी के अप्रतिष्ठान नामक नरक में नारक रूप से उत्पन्न हुए। देवेन्द्र, देवराज शक्र के चौरासी हजार सामानिक देव हैं। जम्बूद्वीप के बाहर के सभी मन्दराचल चौरासी चौरासी हजार योजन ऊंचे कहे गए हैं। नन्दीश्वर द्वीप के सभी अंजनक पर्वत चौरासी चौरासी हजार योजन ऊंचे हैं। हरिवर्ष और रम्यकवर्ष की जीवाओं का परिक्षेप (परिधि) चौरासी हजार सोलह योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से चार भाग प्रमाण हैं। पंकबहुल भाग के ऊपरी चरमान्त भाग से उसी का अधस्तन – नीचे का चरमान्त भाग चौरासी लाख योजन के अन्तर वाला कहा गया है। व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक (भगवती) सूत्र के पद – गणना की अपेक्षा चौरासी हजार पद कहे गए हैं। नागकुमार देवों के चौरासी लाख आवास (भवन) हैं। चौरासी हजार प्रकीर्णक कहे गए हैं। चौरासी लाख जीव – योनियाँ कही गई हैं। पूर्व की संख्या से लेकर शीर्षप्रहेलिका नाम की अन्तिम महासंख्या तक स्वस्थान और स्थानान्तर चौरासी (लाख) के गुणाकार वाले कहे गए हैं। ऋषभ अर्हत् के संघ में चौरासी हजार श्रमण (साधु) थे। सभी वैमानिक देवों के विमानावास चौरासी लाख, सतानवे हजार और तेईस विमान होते हैं, ऐसा भगवान ने कहा है।
चूलिका सहित श्री आचाराङ्ग सूत्र के पचासी उद्देशन काल कहे गए हैं। धातकीखंड के (दोनों) मन्दराचल भूमिगत अवगाढ़ तल से लेकर सर्वाग्र भाग (अंतिम ऊंचाई) तक पचासी हजार योजन कहे गए हैं। (इसी प्रकार पुष्करवर द्वीपार्ध के दोनों मन्दराचल भी जानना चाहिए।) रुचक नामक तेरहवे द्वीप का अन्तर्वर्ती गोलाकार मंडलिक पर्वत भूमिगत अवगाढ़ तल से लेकर सर्वाग्र भाग तक पचासी हजार योजन कहा गया है। अर्थात् इन सब पर्वतों की ऊंचाई पचासी हजार योजन की है। नन्दनवन के अधस्तन चरमान्त भाग से लेकर सौगन्धिक काण्ड का अधस्तन चरमान्त भाग पचासी सौ योजन अन्तर वाला कहा गया है।
सुविधि पुष्पदन्त अर्हत् के छयासी गण और छयासी गणधर थे। सुपार्श्व अर्हत् के ८६०० वादी मुनि थे। दूसरी पृथ्वी के मध्य भाग से दूसरे घनोदधिवात का अधस्तन चरमान्त भाग छयासी हजार योजन के अन्तर वाला कहा गया है।