अवसर्पिणी काल का पाँचवा छट्ठा आरा

श्रमण भगवान महावीर कुछ अधिक बयालीस वर्ष श्रमण पर्याय पालकर सिद्ध, बुद्ध यावत्‌ (कर्म – मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और) सर्व दुःखों से रहित हुए। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप की जगती की बाहरी परिधि के पूर्वी चरमान्त भाग से लेकर वेलन्धर नागराज के गोस्तूभ नामक आवास पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग तक मध्यवर्ती क्षेत्र का बिना किसी बाधा या व्यवधान के अन्तर बयालीस हजार योजन कहा गया है। इसी प्रकार चारों दिशाओं में भी उदकभास शंख और उदकसीम का अन्तर जानना चाहिए। कालोद समुद्र में बयालीस चन्द्र उद्योत करते थे, उद्योत करते हैं और उद्योत करेंगे। इसी प्रकार बयालीस सूर्य प्रकाश करते थे, प्रकाश करते हैं और प्रकाश करेंगे। सम्मूर्च्छिम भुजपरिसर्पों की स्थिति बयालीस हजार वर्ष कही गई है। नामकर्म बयालीस प्रकार का कहा गया है। जैसे – गतिनाम, जातिनाम, शरीरनाम, शरीराङ्गोपाङ्गनाम, शरीर बन्धननाम, शरीरसंघातननाम, संहनननाम, संस्थाननाम, वर्णनाम, गन्धनाम, रनाम, स्पर्शनाम, अगुरुलघुनाम, उप – घातनाम, पराघातनाम, आनुपूर्वीनाम, उच्छ्‌वासनाम, आतपनाम, उद्योतनाम, विहायोगतिनाम, त्रसनाम, स्थावरनाम सूक्ष्मनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम, अपर्याप्तनाम, साधारणशरीरनाम, प्रत्येकशरीरनाम, स्थिरनाम, अस्थिरनाम, शुभ नाम, अशुभनाम, सुभगनाम, दुर्भगनाम, सुस्वरनाम, दुःस्वरनाम, आदेयनाम, अनादेयनाम, यशस्कीर्तिनाम, अयश – स्कीर्तिनाम, निर्माणनाम और तीर्थंकरनाम। लवण समुद्र की भीतरी वेला को बयालीस हजार नाग धारण करते हैं। महालिका विमानप्रविभक्ति के दूसरे वर्ग में बयालीस उद्देशन काल कहे गए हैं। प्रत्येक अवसर्पिणी काल का पाँचवा छट्ठा आरा (दोनों मिलकर) बयालीस हजार वर्ष का है। प्रत्येक उत्सर्पिणी काल का पहला – दूसरा आरा बयालीस हजार वर्ष का है।

 

कर्मविपाक सूत्र (कर्मों का शुभाशुभ फल बताने वाले अध्ययन) के तैंतालीस अध्ययन कहे गए हैं। पहली, चौथी और पाँचवी पृथ्वी में तैंतालीस लाख नारकावास कहे गए हैं। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप के पूर्वी जगती के चरमान्त से गोस्तूभ आवास पर्वत का पश्चिमी चरमान्त का बिना किसी बाधा या व्यवधान के तैंतालीस हजार योजन अन्तर है। इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में जानना। विशेषता यह है कि दक्षिण में दकभास, पश्चिम दिशा में शंख आवास पर्वत है और उत्तर दिशा में दकसीम आवास पर्वत है। महालिका विमान प्रविभक्ति के तीसरे वर्ग में तैंतालीस उद्देशन काल कहे गए हैं।

 

चवालीस ऋषिभाषित अध्ययन कहे गए हैं, जिन्हें देवलोक से च्युत हुए ऋषियों ने कहा है। विमल अर्हत्‌ के बाद चवालीस पुरुषयुग (पीढ़ी) अनुक्रम से एक के पीछे एक सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। नागेन्द्र, नागराज धरण के चवालीस लाख भवनावास कहे गए हैं। महालिका विमान प्रविभक्ति के चतुर्थ वर्ग में चवालीस उद्देशन काल कहे गए हैं।

 

समय क्षेत्र (अढ़ाई द्वीप) पैंतालीस लाख योजन लम्बा – चौड़ा कहा गया है। इसी प्रकार ऋतु (उडु) (सौधर्म – ईशान देवलोक में प्रथम पाथड़े में चार विमानवलिकाओं के मध्यभाग में रहा हुआ गोल विमान) और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी (सिद्धि स्थान) भी पैंतालीस – पैंतालीस लाख योजन विस्तृत जानना चाहिए। धर्म अर्हत्‌ पैंतालीस धनुष ऊंचे थे। मन्दर पर्वत की चारों ही दिशाओं में लवणसमुद्र की भीतरी परिधि की अपेक्षा पैंतालीस हजार योजन अन्तर बिना किसी बाधा के कहा गया है। सभी द्व्यर्ध क्षेत्रीय नक्षत्रोंने ४५ मुहूर्त्त तक चन्द्रमा के साथ योग किया है, योग करते हैं और योग करेंगे i

 

तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा ये छह नक्षत्र पैंतालीस मुहूर्त्त तक चन्द्र के साथ संयोगवाले कहे गए हैं। महालिकाविमान प्रविभक्ति सूत्र के पाँचवे वर्ग में पैंतालीस उद्देशनकाल हैं। 

 

बारहवें दृष्टिवाद अंग के छियालीस मातृकापद कहे गए हैं। ब्राह्मी लिपि के छियालीस मातृ – अक्षर कहे गए हैं। वायुकुमारेन्द्र प्रभंजन के छियालीस लाख भवनावास कहे गए हैं।