आभिनिबोधिक ज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति

कौशलिक ऋषभ अर्हन्‌ तिरेसठ लाख पूर्व वर्ष तक महाराज के मध्य में रहकर अर्थात्‌ राजा पद पर आसीन रहकर फिर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए। हरिवर्ष और रम्यक वर्ष में मनुष्य तिरेसठ रात – दिनों में पूर्ण यौवन को प्राप्त हो जाते हैं, अर्थात्‌ उन्हें माता – पिता द्वारा पालन की अपेक्षा नहीं रहती। निषधपर्वत पर तिरेसठ सूर्योदय कहे हैं। इसी प्रकार नीलवन्त पर्वत पर भी तिरेसठ सूर्योदय कहे गए हैं

 

अष्टाष्टमिका भिक्षुप्रतिमा चौसठ रात – दिनों में, दो सौ अठासी भिक्षाओं से सूत्रानुसार, यथातथ्य, सम्यक्‌ प्रकार काय से स्पर्श कर, पालकर, शोधन कर, पार कर, कीर्तन कर, आज्ञा अनुसार अनुपालन कर आराधित होती है असुरकुमार देवों के चौंसठ लाख आवास (भवन) कहे गए हैं। चमरराज के चौंसठ हजार सामानिक देव कहे गए हैं। सभी दधिमुख पर्वत पल्य (ढोल) के आकार से अवस्थित है, नीचे ऊपर सर्वत्र समान विस्तार वाले हैं और चौंसठ हजार योजन ऊंचे हैं। सौधर्म, ईशान और ब्रह्मकल्प इन तीनों कल्पों में चौंसठ लाख विमानावास हैं। सभी चातुरन्त चक्रवर्तीओं के चौंसठ लड़ी वाला बहुमूल्य मुक्ता – मणियों का हार है।

 

जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में पैंसठ सूर्यमण्डल कहे गए हैं। स्थविर मौर्यपुत्र पैंसठ वर्ष अगारवास में रहकर मुण्डित हो अगार त्याग कर अनगारिता में प्रव्रजित हुए। सौधर्मावतंसक विमान की एक – एक दिशा में पैंसठ – पैंसठ भवन कहे गए हैं।

 

दक्षिणार्ध मानुष क्षेत्र को छियासठ चन्द्र प्रकाशित करते थे, प्रकाशित करते हैं और प्रकाशित करेंगे। इसी प्रकार छियासठ सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे। उत्तरार्ध मानुष क्षेत्र को छियासठ चन्द्र प्रकाशित करते थे, प्रकाशित करते हैं और प्रकाशित करेंगे। इसी प्रकार छियासठ सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे। श्रेयांस अर्हत्‌ के छयासठ गण और छयासठ गणधर थे। आभिनिबोधिक ज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति छयासठ सागरोपम कही गई है।

 

पंचसांवत्सरिक युग में नक्षत्र मास से गिरने पर सड़सठ नक्षत्रमास हैं। हैमवत और ऐरवत क्षेत्र की भुजाएं सड़सठ – सड़सठ सौ पचपन योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से तीन भाग प्रमाण कही गई है। मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्त भाग से गौतम द्वीप के पूर्वी चरमान्त भाग का सड़सठ हजार योजन बिना किसी व्यवधान के अन्तर कहा गया है। सभी नक्षत्रों का सीमा – विष्कम्भ (दिन – रात में चन्द्र द्वारा भोगने योग्य क्षेत्र) सड़सठ भागों से विभाजित करने पर सम अंश वाला कहा गया है।

 

धातकीखण्ड द्वीप में अड़सठ चक्रवर्तीयों के अड़सठ विजय और अड़सठ राजधानियाँ कही गई हैं। उत्कृष्ट पद की अपेक्षा धातकीखण्ड में अड़सठ अरहंत उत्पन्न होते रहे हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे। इसी प्रकार चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव भी जानना चाहिए। पुष्करवर द्वीपार्ध में अड़सठ विजय और अड़सठ राजधानियाँ कही गई हैं। वहाँ उत्कृष्ट रूप से अड़सठ अरहन्त उत्पन्न होते रहे हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे। इसी प्रकार चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव भी जानना चाहिए। विमलनाथ अर्हन्‌ के संघ में श्रमणों की उत्कृष्ट श्रमण सम्पदा अड़सठ हजार थी।

 

समयक्षेत्र (मनुष्य क्षेत्र या अढ़ाई द्वीप) में मन्दर पर्वत को छोड़कर उनहत्तर वर्ष और वर्षधर पर्वत कहे गए हैं जैसे – पैंतीस वर्ष (क्षेत्र), तीस वर्षधर (पर्वत) और चार इषुकार पर्वत। मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से गौतम द्वीप का पश्चिम चरमान्त भाग उनहत्तर हजार योजन अन्तर वाला बिना किसी व्यवधान के कहा गया है। मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों की उत्तर प्रकृतियाँ उनहत्तर हैं।