उस काल तथा उस समय में वर्द्धमानपुर नगर था। वहाँ विजयवर्द्धमान नामक उद्यान था। उसमें मणिभद्र यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ विजयमित्र राजा था। धनदेव नामक एक सार्थवाह – रहता था जो धनाढ्य और प्रतिष्ठित था। उसकी प्रियङ्गु नाम की भार्या थी। उनकी उत्कृष्ट शरीर वाली सुन्दर अञ्जू नामक एक बालिका थी। भगवान्‌ महावीर पधारे यावत्‌ परिषद्‌ धर्मदेशना सूनकर वापिस चली गई। उस समय भगवान के ज्येष्ठ शिष्य श्री गौतमस्वामी यावत्‌ भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए विजयमित्र राजा के घर की अशोकवाटिका के समीप से जाते हुए सूखी, भूखी, निर्मांस किटि – किटि शब्द से युक्त अस्थिचर्मावनद्ध तथा नीली साड़ी पहने हुए, कष्टमय, करुणोत्पादक, दीनतापूर्ण वचन बोलती हुई एक स्त्री को देखते हैं। विचार करते हैं। शेष पूर्ववत्‌ समझना। यावत्‌ गौतम स्वामी पूछते हैं – ‘भगवन्‌ ! यह स्त्री पूर्वभव में कौन थी ?’ इसके उत्तर में भगवान ने कहा – हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप अन्तर्गत भारत वर्ष में इन्द्रपुर नगर था। वहाँ इन्द्रदत्त राजा था। इसी नगर में पृथ्वीश्री गणिका रहती थी। इन्द्रपुर नगर में वह पृथ्वीश्री गणिका अनेक इश्वर, तलवर यावत्‌ सार्थवाह आदि लोगों को चूर्णादि के प्रयोगों से वशवर्ती करके मनुष्य सम्बन्धी उदार – मनोज्ञ कामभोगों का यथेष्ट रूप में उपभोग का यथेष्ट रूप में उपभोग करती हुई समय व्यतीत कर रही थी। तदनन्तर एतत्‌कर्मा एतत्‌प्रधान एतद्‌विद्य एवं एतत्‌ – आचार वाली वह पृथ्वीश्री गणिका अत्यधिक पाप – कर्मों का उपार्जन कर ३५०० वर्ष के परम आयुष्य को भोगकर कालमास में काल करके छट्ठी नरकभूमि में २२ सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाले नारकियों में नारक रूप से उत्पन्न हुई। वहाँ से नीकल कर इसी वर्धमानपुर नगर में वह धनदेव नामक सार्थवाह की प्रियङ्गु भार्या की कोख से कन्या रूप में उत्पन्न हुई। तदनन्तर उस प्रियङ्गु भार्या ने नौ मास पूर्ण होने पर उस कन्या को जन्म दिया और उसका नाम अञ्जुश्री रखा। उसका शेष वर्णन देवदत्ता की तरह जानना। तदनन्तर महाराज विजयमित्र अश्वक्रीड़ा के निमित्त जाते हुए राजा वैश्रमणदत्त की भाँति ही अञ्जुश्री को देखते हैं और अपने ही लिए उसे तेतलीपुत्र अमात्य की तरह माँगते हैं। यावत्‌ वे अंजुश्री के साथ उन्नत प्रासादों में सानन्द विहरण करते हैं। किसी समय अञ्जुश्री के शरीर में योनिशूल नामक रोग का प्रादुर्भाव हो गया। यह देखकर विजय नरेश ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘तुम लोग वर्धमानपुर नगर में जाओ और जाकर वहाँ के शृंगाटिक – त्रिपथ, चतुष्पथ यावत्‌ सामान्य मार्गों पर यह उद्‌घोषणा करो कि – देवी अञ्जुश्री को योनिशूल रोग उत्पन्न हो गया है। अतः जो कोई वैद्य या वैद्यपुत्र, जानकार या जानकार का पुत्र, चिकित्सक या उसका पुत्र रोग को उपशान्त कर देगा, राजा विजयमित्र उसे विपुल धन – सम्पत्ति प्रदान करेंगे।’ कौटुम्बिक पुरुष राजाज्ञा से उक्त उद्‌घोषणा करते हैं। तदनन्तर इस प्रकार की उद्‌घोषणा को सूनकर नगर के बहुत से अनुभवी वैद्य, वैद्यपुत्र आदि चिकित्सक विजयमित्र राजा के यहाँ आते हैं। अपनी औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी बुद्धियों के द्वारा परिणाम को प्राप्त कर विविध प्रयोगों के द्वारा देवी अंजूश्री के योनिशूल को उपशान्त करने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु उनके उपयोगों से अंजूश्री का योनिशूल शान्त नहीं हो पाया। जब वे अनुभवी वैद्य आदि अंजूश्री के योनिशूल को शमन करने में विफल हो गये तब खिन्न, श्रान्त एवं हतोत्साह होकर जिधर से आए थे उधर ही चले गए। तत्पश्चात्‌ देवी अंजूश्री उस योनिशूलजन्य वेदना से अभिभूत हुई सूखने लगी, भूखी रहने लगी और माँस रहित होकर कष्ट – हेतुक, करुणोत्पादक और दीनतापूर्ण शब्दों में विलाप करती हुई समय – यापन करने लगी। हे गौतम ! इस प्रकार रानी अंजूश्री अपने पूर्वोपार्जित पापकर्मों के फल का उपभोग करती हुई जीवन व्यतीत कर रही है। अहो भगवन्‌ ! अंजू देवी काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? हे गौतम ! अंजू देवी ६० वर्ष की परम आयु को भोगकर काल करके इस रत्नप्रभा नामक पृथ्वी में नारकी रूप से उत्पन्न होगी। उसका शेष संसार प्रथम अध्ययन की तरह जानना। यावत्‌ वनस्पतिगत निम्बादि कटुवृक्षों तथा कटुदुग्ध वाले अर्क आदि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी। वहाँ की भव – स्थिति को पूर्ण कर इसी सर्वतोभद्र नगर में मयूर के रूप में जन्म लेगी। वहाँ वह मोर व्याधों के द्वारा मारे जाने पर सर्वतोभद्र नगर के ही एक श्रेष्ठिकुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगी। वहाँ बालभाव को त्याग कर, युवावस्था को प्राप्त कर, विज्ञान की परिपक्व अवस्था को प्राप्त करते हुए वह तथारूप स्थविरों से बोधिलाभ को प्राप्त करेगा। तदनन्तर दीक्षा ग्रहण कर मृत्यु के बाद सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होगा। भगवन्‌ ! देवलोक की आयु तथा स्थिति पूर्ण हो जाने के बाद वह कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जाएगा। वहाँ उत्तम कुल में जन्म लेगा। यावत्‌ सिद्ध बुद्ध सब दुःखों का अन्त करेगा।