श्रमणोपासकों की भार्याओं के नाम निम्नलिखित थे – आनन्द की शिवनन्दा, कामदेव की भद्रा, चुलनीपिता की श्यामा, सुरादेव की धन्या, चुल्लशतक की बहुला, कुंडकौलिक की पूषा, सकडालपुत्र की अग्निमित्रा, महाशतक की रेवती आदि तेरह नन्दीनिपिता की अश्विनी और लेइयापिता की फाल्गुनी।

श्रमणोपासकों के जीवन की विशेष घटनाएं निम्नांकित थी – आनन्द को अवधिज्ञान विस्तार के सम्बन्ध में गौतम स्वामी का संशय, भगवान महावीर द्वारा समाधान। कामदेव को पिशाच आदि के रूप में देवोपसर्ग, श्रमणो – पासक की अन्त तक दृढता। चुलनीपिता को देव द्वारा मातृवध की धमकी से व्रत – भंग और प्रायश्चित्त। सुरादेव को देव द्वारा सोलह भयंकर रोग उत्पन्न करने की धमकी से व्रत – भंग और प्रायश्चित्त। चुल्लशतक को देव द्वारा स्वर्ण – मुद्राएं आदि सम्पत्ति बिखेर देने की धमकी से व्रत – भंग और प्रायश्चित्त। कुंडकौलिक को देव द्वारा उत्तरीय एवं अंगूठी उठाकर गोशालक मत की प्रशंसा, कुंडकौलिक की दृढता, नियतिवाद का खण्डन, देव का निरुत्तर होना। सकडालपुत्र को व्रतशील पत्नी अग्निमित्रा द्वारा भग्न – व्रत पति को पुनः धर्मस्थित करना। महाशतक को व्रत – हीन रेवती का उपसर्ग, कामोद्दीपक व्यवहार, महाशतक की अविचलता। नन्दिनीपिता को व्रताराधना में कोई उपसर्ग नहीं हुआ। और लेइयापिता को व्रताराधना में कोई उपसर्ग नहीं हुआ।

श्रमणोपासक देह त्यागकर निम्नांकित विमानों में उत्पन्न हुए – आनन्द अरुण में, कामदेव अरुणाभ में, चुलनीपिता अरुणप्रभ में, सुरादेव अरुणकान्त में, चुल्लशतक अरुणश्रेष्ठ में, कुंडकौलिक अरुणध्वज में, सकडाल – पुत्र अरुणभूत में, महाशतक अरुणावतंस में, नन्दिनीपिता अरुणगव में और लेइयापिता अरुणकील में उत्पन्न हुए।

श्रमणोपासकों के गोधन की संख्या निम्नांकित रूप में थीं – आनन्द की ४० हजार, कामदेव की ६० हजार, चुलनीपिता की ८००००, सुरादेव की ६००००, चुल्लशतक की ६० हजार, कुंडकौलिक की ६० हजार, सकडाल पुत्र की १० हजार, महाशतक की ८० हजार, नन्दीनिपिता की ४० हजार और लेइयापिता की ४० हजार थीं।

श्रमणोपासकों की सम्पत्ति निम्नांकित स्वर्ण – मुद्राओं में थी – आनन्द की १२ करोड़, कामदेव की १८ करोड़, चुलनीपिता की २४ करोड़, सुरादेव की १८ करोड़, चुल्लशतक की १८ करोड़, कुंडकौलिक की १८ करोड़, सकडालपुत्र की ३ करोड़, महाशतक की कांस्य – परिमित २४ करोड़, नन्दिनीपिता की १२ करोड़ और लेइयापिता की १२ करोड़ थीं।

आनन्द आदि श्रमणोपासकों ने निम्नांकित २१ बातों में मर्यादा की थीं – शरीर पोंछने का तोलिया, दतौन, केश एवं देह – शुद्धि के लिए फल – प्रयोग, मालिश के तैल, उबटन, स्नान के लिए पानी, पहनने के वस्त्र, विलेपन, पुष्प, आभूषण, धूप, पेय। तथा – भक्ष्य – मिठाई, ओदन, सूप, घृत, शाक, व्यंजन, पीने का पानी, मुखवास।

इन दस श्रमणोपासकों में आनन्द तथा महाशतक को अवधि – ज्ञान प्राप्त हुआ, आनंद का अवधिज्ञान इस प्रकार है – पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में लवणसमुद्र में पाँच – पाँच सौ योजन तक, उत्तर दिशा में चुल्लहिमवान्‌ वर्षधर पर्वत तक, ऊर्ध्व – दिशा में सौधर्म देवलोक तक, अधोदिशा में प्रथम नारक भूमि रत्नप्रभा में लोलुपाच्युत नामक स्थान तक।

प्रत्येक श्रमणोपासक ने ११ – ११ प्रतिमाएं स्वीकार की थीं, जो निम्नांकित हैं – दर्शन – प्रतिमा, व्रत – प्रतिमा, सामायिक – प्रतिमा, पोषध – प्रतिमा, कायोत्सर्ग – प्रतिमा, ब्रह्मचर्य – प्रतिमा, सचित्ताहार – वर्जन – प्रतिमा, स्वयं आरम्भ – वर्जन – प्रतिमा, भृतक – प्रेष्यारम्भ – वर्जन – प्रतिमा, भृतक – प्रेष्यारम्भ – वर्जन – प्रतिमा, उद्दिष्ट – भक्त – वर्जन – प्रतिमा, श्रमण – भूत – प्रतिमा।

इन सभी श्रमणोपासकों ने २० – २० वर्ष तक श्रावक – धर्म का पालन किया, अन्त में एक महीने की संलेखना तथा अनशन द्वारा देह – त्याग किया, सौधर्म देवलोक में चार – चार पल्योपम आयु के देवों के रूप में उत्पन्न हुए। देवभव के अनन्तर सभी महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगे, मोक्ष – लाभ करेंगे।