वहाँ सुरादेव गाथापति था। वह अन्यन्त समृद्ध था। छह करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं स्थायी पूंजी के रूप में उसके खजाने में थीं, यावत्‌ उसके छह गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में दस – दस हजार गायें थीं। उसकी पत्नी का नाम धन्या था। भगवान महावीर पधारे। आनन्द की तरह सुरादेव ने भी श्रावक – धर्म स्वीकार किया। कामदेव की तरह वह भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति – के अनुरूप उपासना – रत हुआ। एकदा आधी रात के समय श्रमणोपासक सुरादेव के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। उसने तलवार नीकाल – कर श्रमणोपासक सुरादेव से कहा – मृत्यु को चाहने वाले श्रमणोपासक सुरादेव ! यदि तुम आज शील, व्रत आदि का भंग नहीं करते हो तो मैं तुम्हारे बड़े बेटे को घर से उठा लाऊंगा। तुम्हारे सामने उसे मार डालूँगा। उसके पाँच मांस – खण्ड करूँगा, उबलते पानी से भरी कढ़ाही में खौलाऊंगा, उसके मांस और रक्त से तुम्हारे शरीर को सींचूंगा, जिससे तुम असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे। इसी प्रकार उसने मझले और छोटे लड़के को भी मार डालने, उनको पाँच – पाँच मांस – खंड़ों में काट डालने की धमकी दी। चुलनीपिता के समान ही उसने किया, विशेषता यह कि यहाँ पाँच – पाँच खंड – किए। तब उस देव ने श्रमणोपासक सुरादेव को चौथी बार भी कहा – मृत्यु को चाहनेवाले श्रमणोपासक सुरादेव ! यदि अपने व्रतों का त्याग नहीं करोगे तो आज मैं तुम्हारे शरीरमें एक ही साथ श्वास – कास – यावत्‌ कोढ़, ये सोलह भयानक रोग उत्पन्न कर दूँगा, जिससे तुम आर्त्तध्यान से यावत्‌ जीवन से हाथ धो बैठोगे। तब भी श्रमणोपासक सुरादेव धर्म – ध्यान में लगा रहा तो उस देव ने दूसरी बार, तीसरी बार फिर वैसा ही कहा।

उस देव द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार यों कहे जाने पर श्रमणोपासक सुरादेव के मन में ऐसा विचार आया, यह अधम पुरुष यावत्‌ अनार्यकृत्य करता है। मेरे शरीर में सोलह भयानक रोग उत्पन्न कर देना चाहता है। अतः मेरे लिए यही श्रेयस्कर है, मैं इस पुरुष को पकड़ लूँ। यों सोचकर वह पकड़ने के लिए उठा। इतने में वह देव आकाश में उड़ गया। सुरादेव के पकड़ने को फैलाए हाथों में खम्भा आ गया। वह जोर – जोर से चिल्लाने लगा। सुरादेव की पत्नी धन्या ने जब यह कोलाहल सूना तो जहाँ सुरादेव था, वह वहाँ आई। आकर पति से बोली – देवानुप्रिय ! आप जोर – जोर से क्यों चिल्लाए ? श्रमणोपासक सुरादेव ने चुलनीपिता के समान पत्नी धन्या से सारी घटना बताई। धन्या बोली – देवानु – प्रिय ! किसी ने तुम्हारे बड़े, मझले और छोटे लड़के को नहीं मारा। न कोई पुरुष तुम्हारे शरीर में एक ही साथ सोलह भयानक रोग ही उत्पन्न कर रहा है। यह तो तुम्हारे लिए किसी ने उपसर्ग किया है। चुलनीपिता के समान यहाँ भी सब कथन समझना। अन्त में सुरादेव देह – त्याग कर सौधर्मकल्प में अरुणकान्त विमान में उत्पन्न हुआ। उसकी आयु – स्थिति चार पल्योपम की बतलाई गई है। महाविदेह – क्षेत्र में वह सिद्ध होगा – मोक्ष प्राप्त करेगा।