श्रावस्ती नगरी में नन्दिनीपिता नामक समृद्धिशाली गाथापति निवास करता था। उसकी चार करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थीं, चार करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं व्यापार में लगी थीं तथा चार करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं घर की साधन – सामग्री में लगी थीं। उसके चार गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में दस – दस हजार गायें थीं। उसकी पत्नी का नाम अश्विनी था। भगवान महावीर श्रावस्ती में पधारे। समवसरण हुआ। आनन्द की तरह नन्दिनीपिता ने श्रावक – धर्म स्वीकार किया। भगवान अन्य जनपदों में विहार कर गए। नन्दिनीपिता श्रावक – धर्म स्वीकार कर श्रमणोपासक हो गया, धर्माराधनापूर्वक जीवन बिताने लगा। तदनन्तर श्रमणोपासक नन्दिनीपिता को अनेक प्रकार से अणुव्रत, गुणव्रत आदि की आराधना द्वारा आत्मभावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। उसने आनन्द आदि की तरह अपने ज्येष्ठ पुत्र को पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व सौंपा। स्वयं धर्मोपासना में निरत रहने लगा। नन्दिनीपिता ने बीस वर्ष तक श्रावक – धर्म का पालन किया। आनन्द आदि से इतना अन्तर है – देह – त्याग कर वह अरूणग विमान में उत्पन्न हुआ। महाविदेह क्षेत्र में वह सिद्ध – मुक्त होगा।