भगवन् ! ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग है और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम है । अपर्याप्त ज्योतिष्कदेवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । पर्याप्त ज्योतिष्कदेवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है । ज्योतिष्क देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट पचास हजार वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम की है । अपर्याप्त ज्योतिष्कदेवियों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । पर्याप्त ज्योतिष्क देवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम के आठवें भाग की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम पचास हजार वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम है ।
चन्द्रविमान में देवों की स्थिति सामान्य ज्योतिष्क देवों के समान जान लेना । चन्द्रविमान में देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट पचास हजार वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम है । चन्द्रविमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । चन्द्रविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम के चतुर्थ भाग की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम पचास हजार वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम की है ।
भगवन् ! सूर्यविमान में देवों की स्थिति कितने काल की है ? जघन्य पल्योपम के चौथाई भाग और उत्कृष्ट एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम की है । सूर्यविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्त-र्मुहूर्त्त की है । सूर्यविमान में पर्याप्त देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम के चतुर्थभाग की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम की है । सूर्यविमान में देवियों की स्थिति पल्योपम के चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट पाँच सौ वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम है । सूर्यविमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । सूर्यविमान में पर्याप्तक देवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम के चौथाई भाग की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम पाँच सौ वर्ष अधिक अर्द्ध पल्योपम की है ।
ग्रहविमान में देवों की स्थिति जघन्य पल्योपम के चौथाई भाग और उत्कृष्ट एक पल्योपम है । ग्रहविमान में अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । ग्रहविमान में पर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम के चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम एक पल्योपम है । ग्रहविमान देवियों की जघन्य स्थिति देवों के समान ही है । उत्कृष्ट स्थिति अर्धपल्योपम की है ।
भगवन् ! नक्षत्रविमान में देवों की स्थिति ग्रहविमान की देवियों के समान है । नक्षत्रविमान में देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थभाग है और उत्कृष्ट कुछ अधिक चौथाई पल्योपम की है । नक्षत्रविमान में अपर्याप्तक देवियों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । नक्षत्रविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम चौथाई पल्योपम और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम के चौथाई भाग से कुछ अधिक है ।
ताराविमान में देवों की स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग और उत्कृष्ट चौथाई पल्योपम है । भगवन् ! ताराविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । ताराविमान में पर्याप्त देवों की स्थिति औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त्त कम जानना । ताराविमान में देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग और उत्कृष्ट पल्योपम के आठवें भाग से कुछ अधिक की है । ताराविमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त की है । ताराविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त्त कम है ।
भगवन् ! वैमानिक देवों की स्थिति कितने काल की है ? जघन्य एक पल्योपम की है और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम है । अपर्याप्तक वैमानिक देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । पर्याप्त वैमानिक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम एक पल्योपम और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तैंतीस सागरोपम है । वैमानिक देवियों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम है । वैमानिक अपर्याप्त देवियों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । पर्याप्त वैमानिक देवियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम एक पल्योपम और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम पचपन पल्योपम है ।
भगवन् ! सौधर्मकल्प में, देवों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट दो सागरोपम है । इनके अपर्याप्तों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त की है । सौधर्मकल्प में पर्याप्तक देवों की स्थिति औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त्त कम समझना । सौधर्मकल्प में देवियों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट पचास पल्योपम है । इनके अपर्याप्त की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । सौधर्मकल्प की पर्याप्तक देवियों की स्थिति औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त्त कम समझना । सौधर्मकल्प में परिगृहिता देवियों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट सात पल्योपम है । इनके अपर्याप्तकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । इनके पर्याप्त की स्थिति औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त्त कम समझना । सौधर्मकल्प में अपरिगृहिता देवियों की स्थिति औघिक देवियों के समान जानना
भगवन् ! ईशानकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की है ? सौधर्मकल्प के देवों से कुछ अधिक समझना। ईशानकल्प में देवियों की स्थिति सौधर्मकल्प देवियों के समान ही है, विशेष यह की जघन्य स्थिति में कुछ अधिक कहना । ईशानकल्प में परिगृहीता देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम से कुछ अधिक और उत्कृष्ट भी नौ पल्योपम है । इनकी अपर्याप्त देवियों की स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त ही है । इनकी पर्याप्त देवियों की स्थिति इनकी औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त्त कम है । ईशानकल्प में अपरिगृहीता देवियों की स्थिति इनकी औघिक देवियों के समान ही है ।
सनत्कुमारकल्प में देवों की स्थिति जघन्य दो सागरोपम और उत्कृष्ट सात सागरोपम है । इनके अपर्याप्त की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त की है । – इनके पर्याप्तों की स्थिति इनकी औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त्त कम समझना । माहेन्द्रकल्प के देवों की स्थिति सनत्कुमारदेवों से कुछ अधिक समझना । ब्रह्मलोककल्प में देवों की स्थिति जघन्य सात सागरोपम और उत्कृष्ट दस सागरोपम है । इनके अपर्याप्तकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। इनके पर्याप्तकों की स्थिति इनकी औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त्त कम समझना ।
लान्तककल्प में देवों की स्थिति जघन्य दस सागरोपम और उत्कृष्ट चौदह सागरोपम है । इनके अपर्याप्तकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । इनकी पर्याप्तकों की स्थिति इनकी औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त्त कम समझना । महाशुक्रकल्प में देवों की स्थिति जघन्य चौदह सागरोपम तथा उत्कृष्ट सत्तरह सागरोपम है । इनके अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त की है । इनके पर्याप्तकों की स्थिति औघिक से अन्त-र्मुहूर्त्त कम है । सहस्रारकल्प में देवों की स्थिति जघन्य सत्तरह सागरोपम और उत्कृष्ट अठारह सागरोपम है । इनके अपर्याप्तकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त है । इनके पर्याप्तकों की स्थिति ओघिक से अन्तर्मुहूर्त्त कम है ।
आनतकल्प के देवों की स्थिति जघन्य अठारह सागरोपम और उत्कृष्ट उन्नीस सागरोपम है । भगवन् ! आनतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? इनके अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है, इनके पर्याप्तकों की स्थिति औघिक से अन्तर्मुहूर्त्त कम है । प्राणतकल्प में देवों की स्थिति जघन्य उन्नीस सागरोपम है और उत्कृष्ट बीस सागरोपम है । भगवन् ! प्राणतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितन काल तक की कही गई है ? इनके अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । इनके पर्याप्तकों की स्थिति औघिक से अन्तर्मुहूर्त्त कम है । आरणकल्प में देवों की स्थिति जघन्य बीस सागरोपम और उत्कृष्ट इक्कीस सागरोपम है । इनके अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । इनके पर्याप्तकों की स्थिति ओघिक से अन्तर्मुहूर्त्त कम है । अच्युतकल्प में देवों की स्थिति जघन्य इक्कीस सागरोपम और उत्कृष्ट बाईस सागरोपम है । इनके अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है । इनके पर्याप्तकों की स्थिति ओघिक से अन्तर्मुहूर्त्त कम है
भगवन् ! अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट तेईस सागरोपम की है । अधस्तन-मध्यम ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य तेईस सागरोपम और उत्कृष्ट चौबीस सागरोपम है । अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य चौबीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट पच्चीस सागरोपम की है। इन तीनों अधस्तन ग्रैवेयकों के अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है तथा इनके पर्याप्तक देवों की स्थिति अपनी अपनी औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त्त कम समझ लेना ।
मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य पच्चीस सागरोपम और उत्कृष्ट छब्बीस सागरोपम है । मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य छब्बीस सागरोपम की और उत्कृष्ट सत्ताईस सागरोपम की है । मध्यम-उपरितन ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य सत्ताईस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अट्ठाईस सागरोपम की है । इन तीनों ग्रैवेयकों के अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त्त की है और इनके पर्याप्तकों की स्थिति अपनी अपनी औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त्त कम है ।
उपरितन-अधस्तन ग्रैवेयक देवों की ? गौतम ! जघन्य अट्ठाईस तथा उत्कृष्ट उनतीस सागरोपम है । उपरितन-मध्यम ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य उनतीस तथा उत्कृष्ट तीस सागरोपम है । भगवन् ! उपरितन-उपरितन ग्रैवेयकदेवों की स्थिति जघन्य तीस तथा उत्कृष्ट इकतीस सागरोपम है । इन तीनों के अपर्याप्तक और पर्याप्तक देवों की स्थिति का कथन पूर्व ग्रैवेयकवत् जानना ।
भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमानों में देवों की स्थिति कितने काल तक की है ? जघन्य इकतीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की है । सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देवों की स्थिति अजघन्य अनुत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम है । पाँच अनुत्तर विमान के अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त की है और पर्याप्तक देवों की स्थिति अपनी औघिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त्त कम है ।