भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई है ? गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं – ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय यावत् अन्तराय। भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म की बन्धस्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी स्थिति को कम करने से शेष कर्मस्थिति कर्मनिषेधकाल जानना। इसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म के विषय में भी जानना। वेदनीय कर्म की जघन्य (बन्ध – ) स्थिति दो समय की है, उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की जाननी चाहिए मोहनीय कर्म की बन्धस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट ७० कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। सात हजार वर्ष का अबाधाकाल है। अबाधाकाल की स्थिति को कम करने से शेष कर्मस्थिति कर्मनिषेककाल जानना चाहिए। आयुष्यकर्म की बन्धस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि के त्रिभाग से अधिक तैंतीस सागरोपम की है। इसका कर्मनिषेक काल (तैंतीस सागरोपम का तथा शेष) अबाधाकाल जानना चाहिए। नामकर्म और गोत्र कर्म की बन्धस्थिति जघन्य आठ मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट २० कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। इसका दो हजार वर्ष का अबाधाकाल है। उस अबाधाकाल की स्थिति को कम करने से शेष कर्मस्थिति कर्मनिषेक काल होता है। अन्तरायकर्म के विषय में ज्ञानावरणीय कर्म की तरह समझ लेना चाहिए।