सातावेदनीय एवं असातावेदनीय कर्म

 

भगवन्‌ ! क्या जीव सातावेदनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! बाँधते हैं। भगवन्‌ ! जीव सातावेदनीय कर्म कैसे बाँधते हैं ? गौतम ! प्राणों पर अनुकम्पा करने से, भूतों पर अनुकम्पा करने से, जीवों के प्रति अनुकम्पा करने से और सत्त्वों पर अनुकम्पा करने से; तथा बहुत – से प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःख न देने से, उन्हें शोक उत्पन्न न करने से, चिन्ता उत्पन्न न कराने से, विलाप एवं रुदन कराकर आंसू न बहवाने से, उनको न पीटने से, उन्हें परिताप न देने से जीव सातावेदनीय कर्म बाँधते हैं। इसी प्रकार नैरयिक जीवों के विषय में कहना चाहिए। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। भगवन्‌ ! जीव असातावेदनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! बाँधते हैं। भगवन्‌ ! जीव असातावेदनीय कर्म कैसे बाँधते हैं ? गौतम ! दूसरों को दुःख देने से, दूसरे जीवों को शोक उत्पन्न करने से, जीवों को विषाद या चिन्ता उत्पन्न करने से, दूसरों को रुलाने या विलाप कराने से, दूसरों को पीटने से और जीवों को परिताप देने से तथा बहुत – से प्राण, भूत, जीव एवं सत्त्वों को दुःख पहुँचाने से, शोक उत्पन्न करने से यावत्‌ उनको परिताप देने से हे गौतम ! इस प्रकार से जीव असातावेदनीय कर्म बाँधते हैं। इसी प्रकार नैरयिक जीवों के विषय में समझना चाहिए। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कथन करना चाहिए।