भगवन् ! असंज्ञी का आयुष्य कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! असंज्ञी का आयुष्य चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है – नैरयिक – असंज्ञी आयुष्य, तिर्यंच – असंज्ञी आयुष्य, मनुष्य – असंज्ञी आयुष्य और देव – असंज्ञी आयुष्य। भगवन् ! असंज्ञी जीव क्या नरक का आयुष्य उपार्जन करता है, तिर्यंचयोनिक का आयुष्य उपार्जन करता है, मनुष्य का आयुष्य भी उपार्जन करता है या देव का आयुष्य उपार्जन करता है ? हाँ, गौतम ! वह नरक का आयुष्य भी उपार्जन करता है, तिर्यंच का आयुष्य भी उपार्जन करता है, मनुष्य का आयुष्य भी उपार्जन करता है और देव का आयुष्य भी उपार्जन करता है। नारक का आयुष्य उपार्जन करता हुआ असंज्ञी जीव जघन्य दस हजार वर्ष का और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग का उपार्जन करता है। तिर्यंचयोनि का आयुष्य उपार्जन करता हुआ असंज्ञी जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त का और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग का उपार्जन करता है। मनुष्य का आयुष्य भी इतना ही उपार्जन करता है और देव आयुष्य का उपार्जन भी नरक के आयुष्य के समान करता है। हे भगवन् ! नारक – असंज्ञी – आयुष्य, तिर्यंच – असंज्ञी – आयुष्य, मनुष्य – असंज्ञी – आयुष्य और देव – असंज्ञी – आयुष्य; इनमें कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! देव – असंज्ञी – आयुष्य सबसे कम है, उसकी अपेक्षा मनुष्य – असंज्ञी – आयुष्य असंख्यातगुणा है, उससे तिर्यंच असंज्ञी – आयुष्य असंख्यात – गुणा है और उससे भी नारक – असंज्ञी – आयुष्य असंख्यातगुणा है।